आओ हँस लें

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Monday

पुण्य की गंगा


मेरे गाव मे
कल ही
पहरेदार आए है
अपनी संस्कृति बचाने  को  दूर से
लंबरदार आए है
घने बागों मे,   दल बल सहित
डेरा जमाया है
अनन्य   भक्तों ने  बड़ा
आसन सजाया है
बेचेंगे टिकट ,
डाइरेक्ट,
एकदम स्वर्ग जाने का
ठेका लिया  है  आपके
कल को बनाने का
वर्जित है ,
यहाँ आश्रम मे
जूते और खाली दिमाग
जेहन मे  बस प्रज्वलित हो
धर्म की आग
चलेगी  नहीं कोई  वहाँ
तर्कों की कसौटी
सेंकी जाएगी यहाँ बस
धर्म की रोटी
कौन आयेगा यहाँ  सब  वी आई पी  की
लिस्ट है तैयार
शासन  प्रमुख   की प्रथम दिन  होगी  यहा दरकार
महिलाएं बस ... ,
गुरुजी के बहुत नजदीक जाएंगी
भक्ति रस मे सब   मगन होगी
मन लगाएँगी
आज से पंद्रह   दिनों  बस
अध्यात्म का मेला
भक्तों से प्रभू  का
सीधा   है संपर्क का रेला
सूखा पड़ा  , फसले हुयी   बर्बाद
कुछ भी न हुआ होता
कुछ महीने  पहले अगर
समागम हुआ होता
धूल मे अध्यात्म के कण  छोड़ जाएँगे
जाएँगे यहाँ से
पुण्य की गंगा बहाएँगे


- कुशवंश




 

1 comment:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 5 दिसंबर 2015 को लिंक की जाएगी ....
    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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