प्रजातंत्र के मंदिर में ये
कैसा अद्भुत खेल,
राजनीति के नाम उडेला
अपना-अपना तेल,
जनमानस को छलते-छलते
भूल गए व्यवहार,
संस्कार छलनी कर डाले
बना दिया व्यापार,
करते कुछ गंभीर
सोचते सूखे मन की बात ,
दे जाते भूखी जनता को
कुछ मीठी सौगात,
कुर्सी की मारा-मारी में
भूले दुनियादारी,
गन्दा मंदिर कर डाला
क्यों गंदा हुआ पुजारी ?
पक्ष और विपक्ष सभी थे
छिपा अजेंडा लाये,
सरे आम जनता की आँखों
धुल झोकने आये,
देखा सब कुछ नग्न
सत्य जो छिपा हुआ था,
प्रजातंत्र का तंत्र
प्रजा पर भारी था .
मत भूलो,
मदहोश,
वही फिर जाना होगा,
छिपा हुआ ये काला मुह
दिखलाना होगा,
अबकी मिलकर
सबक सिखा देंगे हम सारे,
खुल जायेंगे
छिपे हुए
सब पाप तुम्हारे,
भोली जनता से अपील
अब ताकत जानो,
खोल पहनकर छिपे
भेडिये को भी पहचानो .
अन्ना ने कहा-‘बांझ औरत प्रसूता की वेदना को क्या समझेगी ?‘
ReplyDeleteअन्ना तो अन्ना हैं।
अन्ना ख़ालिस देहाती आदमी हैं।
वे भी शहरी लोगों की तरह आगा पीछा सोचा किये होते तो बस कर लेते क्रांति ?
किसी पार्टी से मोटा माल पकड़कर वे भी मौज मारते।
जितने लोग सभ्य और सुशील हैं, जो शिक्षा में उनसे ज़्यादा हैं,
वे कर लें आंदोलन !
बांझ औरत प्रसव की पीड़ा नहीं जानती ,
यह सच है और यह भी सच है कि बच्चों को जन्म देने वाली मांएं यह नहीं जानतीं कि बांझ रह जाने वाली औरत की पीड़ा क्या होती है ?
ख़ैर, इस समय अन्ना का मूड बुरी तरह ख़राब है,
वे कांग्रेस को हराने के लिए कमर कस चुके हैं।
कोई दूसरा होता तो इस काम के लिए भी पैसे पकड़ लिए होते किसी से
लेकिन हमारे अन्ना यह काम बिल्कुल मुफ़्त कर देंगे,
बिल्कुल किसी हिंदी ब्लॉगर की तरह।
ब्लॉगर इस या उस पार्टी को हराने के लिए लिख रहा है बिल्कुल मुफ़्त,
जबकि अख़बार और चैनल वाले मोटा माल पकड़ रहे हैं।
कम से कम कोई एग्रीगेटर ही पकड़ ले इनसे कुछ।
आमदनी का मौक़ा है,
ऐसे में अन्ना बनकर काम नहीं चलता,
बस अन्ना को ही अन्ना रहने दो
और ख़ुद मौक़े से लाभ उठाओ।
नया साल आ गया है,
नए मौक़े लेकर आया है,
सबको नव वर्ष की शुभकामनाएं।
बेहद जानदार रचना.
ReplyDeleteनववर्ष की शुभकामनायें.
नववर्ष की शुभकामनायें.
ReplyDeleteसुंदर रचना अच्छी प्रस्तुति ,.....
ReplyDeleteनया साल सुखद एवं मंगलमय हो,....
नई पोस्ट --"नये साल की खुशी मनाएं"--
बहोत अच्छा लगा आपका ब्लॉग पढकर ।
ReplyDeleteनया हिंदी ब्लॉग
हिन्दी दुनिया ब्लॉग