आओ हँस लें

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Saturday

आपके दोहे

















झाड़ू लेकर मैं चला , गंदा मिला न कोय
जो घर देखा आपना , मुझसा गंदा न होय

मीडिया  के साथी मेरे , अपना मीडिया होय 
स्ट्रिंग अपना कैसे हुआ , झाड़ू दिया भिगोय

गले मे मफ़लर, खो खो खांसी , बंगलुरू विश्राम 
कौन बना है बाप आपका ,छिड़ा हुआ संग्राम 

बिजली सस्ती, पानी मुफ्त , वाईफ़ाई पैसों से मुक्त 
दिल्ली मांगेगी हिसाब , अब कैसे दूँ मैं एक मुस्त


नई खरीदी झाड़ू अपनी , बिखरी जाती सींकें
अभी भी खांसी ठीक नही है , आने लगी हैं छींकें 

राजनीति मे आकार जाना , राजनीति का गंदा खेल 
दिल्ली की  कुर्सी से अच्छी अब तो लगती सेंट्रल जेल।


-कुशवंश



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