आओ हँस लें

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Thursday

नोट लो वोट दो ...










वर्षों पहले संसद में  लहराए थे नोट 
बता रहे थे घूस में खरीद लिए  थे वोट. 

खरीदे लिए थे  वोट तभी सरकार बची है 
बिकना है जिस चीज़  को,  ये उसकी मर्जी है. 

खेल हुआ जो  ,असल खिलाड़ी छिपे रहे 
बनते थे जो महा  चतुर,   वो धरे गए. 

धरे गए हो  आज,  मगर तुम बड़े खिलाड़ी 
मन में क्या है  प्लान ?  गए जो  आज तिहाडी.

मन में कुछ  है,  जो आका का नाम छिपाते  
डर  है या कुछ  और  नाम जो पेट पचाते . 

जिसको तुमने भ्रष्ट तंत्र का दिया सहारा 
कठिन समय में वही कर गया आज किनारा. 

मुह को खोलो, शर्म करो, अमर हो जाओ 
प्रजातंत्र की कुछ तो खोयी साख बचाओ. 

सदियों से जो सड़क पर , खरीद रहे थे वोट 
प्रजातंत्र के मंदिर में भी पहुच गयी वो  खोट. 

-कुश्वंश  


2 comments:

  1. .

    @-
    मुह को खोलो, शर्म करो, अमर हो जाओ
    प्रजातंत्र की कुछ तो खोयी साख बचाओ.....


    जब आँख का पानी मर जाता है तो शर्म की उम्मीद कैसे करें ?
    सुन्दर कविता।

    .

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  2. धरे गए हो आज, मगर तुम बड़े खिलाड़ी
    मन में क्या है प्लान ? गए जो आज तिहाडी.

    वाह....वाह...वाह.

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