सूबे में आ गए चुनाव,
उलटे पुल्टे होंगे दाव,
गली, मुडेर घर चौबारे में,
कौवों की बस काव-काव,
कोयल छुपी शर्म से, डर में,
नंगे घुसे आ रहे घर में,
चोर चोर मौसेरे भाई,
सबने अपनी जात दिखाई,
मुह की रोटी छीन खा गए,
कालिख मुह, लपेट आ गए,
त्रिशूल, छुरे , तलवार चलेंगे,
शाम-दाम की धार चलेंगे,
कही जाति की होंगी काकी,
जिनपर कई मुक़दमे बाकी,
पाउच की बौछार बहेगी ,
नोटों की मनुहार चलेगी,
सड़क बनेगी रातो-रात,
बिजली की होगी सौगात,
तुमसे छीन वोट जब लेंगे,
तबतक मीठी बात करेंगे,
पीछे से देंगे फिर लात,
ऐसी ही है इनकी जात,
इसी लिए , देखो और समझो,
कुछ रुपयों में धर्म न बदलो,
अपना एक वोट पहचानो,
उसका मूल्य बहुत है जानों,
सोचो समझो देश बचाओ ,
साठ साल से लूट रहे जो टोपी धारी
उनको अबकी धुल चटाओ,
अब तो बस जाग्रत हो जाओ,
देश बचाओ,धर्म बचाओ, मूल्य बचाओ,
भूल गए जो अपनी ताकत ,
उसे जगाओ
सबको फिर अहसास कराओ ,
देश बचाओ .
आगे बढ़ो , मुखौटे नोंच
अब तो अपनी खोलो "चोंच"
असलियत दिखाता हुआ सामयिक व्यंग्य ...शुभकामनायें आपको !
ReplyDeleteकोयल छुपी शर्म से, डर में,
ReplyDeleteनंगे घुसे आ रहे घर में,
कोयल भी जेल कट रही है .राजनीति में कोयल भी काव-काव ही करती है .बढ़िया व्यंग्य .आभार
आपके इस ब्लॉग का परिचय मैंने ''ये ब्लॉग अच्छा लगा ''पर दिया है .आप ''http //yeblogachhalaga .blogspot कॉम''पर आकर अनुग्रहित करें ''
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