तुम्हे हँसी नहीं आती
हमारी खादी से बहार निकलती काया पर
हमें तो आती है
बड़े अनमने मन से,
दिखने के लिए
पहनते है कुरता खादी का
मन में तो वही है
ये जलवा ..फैशन का है ये जलवा ...
हम क्या बोलते है
कोई सोच कर थोड़े ही बोलते है
बोल दिया फिर सोचते है
अब तुमने चुना है तो
इतना अधिकार है न
अगर नहीं
तो चुना ही क्यों ?
ठीक है कल गाँव में
गोबर भी नहीं था घर में
आज तो है
ढेर सारा काला धन
कोई देश, कोई व्यक्ति प्रगति पर है
उसे क्यों डराते हो
लोकपाल से ?
हमारी भी कुछ जवाबदेही है
राजघराने के प्रति
राज कुमार के प्रति
ये देश राजाओं का था
राजाओं का है, और रहेगा
तुम प्रजा हो
प्रजा ही रहो
कर चुकाओ,
ठर्रा पियो
जब मांगे वोट
डाल जाओ
मस्त रहो
सो जाओ
बस.....
बहुत खूब शानदार प्रस्तुति बधाई
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