एक नेता जी मंच से दहाड़े
मुझे जिताओ
तुम्हारे दरवाजे
दूध की नदियाँ बहा दूंगा
पीने को भले न मिले पानी
तुम्हें शराब से नहला दूंगा
खुलवा दूंगा घर घर भट्ठी
फिर रोज बनाओ
रोज़ पाओ
खेती में क्या करोगे फसल बोकर
कभी बाढ़
कभी सूखा
रहोगे भुक्खड़ के भुक्खड़
सड़क क्या करोगे
बनी भी तो तुडवा दूंगा
सड़क होगी तो जल्दी पहुचेगी पुलिश
अब क़ानून से भी तो बचाना है
तुम्हे इन्साफ भी तो दिलाना है
इस कुटीर उद्योग से
सम्पन्नता आयेगी
माल्या के बाद
तुम्हारी धाक जम जायेगी
तुम्हे मोक्ष दिलाने
बहा देंगे गंगा तुम्हारे दरवाजे
बस चुनाव चिन्ह याद रखना
चढ़ ..... की छाती पर
बटन दबाना ...... पर
तभी सयोजक ने माइक छीना
क्या करते हो
आप कल तक थे उस पार्टी में
आज मोटरसायकिल के गुण गाओ
उतार फेंको काली टोपी
अब तो हरी लगाओ
नेताजी नाराज हो गए
संयोजक से बिगड़ गए
भाड़ में जाये तुम्हारी पार्टी
एक कद्दावर से माइक छीनते हो
किस होश में हो
वो नीचे देखो
गुलदस्ता लिए खड़े है
नेताजी से कह दो
विरोध दर्ज करा रहा हूँ
फूल वाली पार्टी में जा रहा हूँ
कल से बखिया उधेरूगा
किसी भकुए को नहीं छोडूंगा.
Waah...
ReplyDeleteविश्व संस्कृति की तरह ही भारतीय संस्कृति भी बड़ी अद्भुत है।
http://mypoeticresponse.blogspot.com/2012/01/blog-post.html
सुन्दर रचना.....
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर और प्रशंसनीय रचना..........
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग से जुड़ने के लिए आपका बहुत धन्यवाद। साथ ही मैँ आपको ऐसे ब्लॉग से अवगत करना चाहता हूँ जो हिन्दी ब्लॉग जगत मेँ समाचार उपलब्ध कराने का कार्य कर रहा है, इसका URL http://indiadarpan.blogspot.com है।
उम्मीद है कि जानकारी आपको पसंद आएगी।
waah bahut badhiyaa.
ReplyDeleteआज कल UP चुनाव यही हो रहा है,
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति,बेहतरीन रचना
welcome to new post --काव्यान्जलि--यह कदंम का पेड़--
बहुत ही खूबसूरत प्रस्तुति!
ReplyDeleteदूध की नदियाँ बहा दूंगा
ReplyDeleteपीने को भले न मिले पानी
तुम्हें शराब से नहला दूंगा
खुलवा दूंगा Bahut Khoob Bejod vyangya kavita jo aajke rajnit ke wastwik swroop ko darshati hai.