आओ हँस लें

आओ हँस लें

Tuesday

सिर्फ गाल बजाएँगे


कहते हैं सब
ये राजनीति वोटों तक ही नही सीमित होनी चाहिए
उससे आगे भी जानी चाहिए
तुम्हारी जाति क्या है
क्या है तुम्हारा मजहब
अगड़े हो क्या
या मनुवादी , या फिर
पिछड़ा
उससे भी पिछड़ा
महा पिछड़ा
दलित
उससे भी दलित
महा दलित
और इन सबका कुछ न कुछ आरक्षण
शब्द बदलते गए
आदमी वहीं का वहीं
राजनीति मे भूचाल आ गया
उसने उसे खीच लिया
उसकी पहुँच उनके बीच अच्छी है
वो सुबह गए
मैं शाम को जाता हूँ
वो रो कर आए थे
मैं उनके घर रात बिता कर आता हूँ
चारपाई मे बैठ कर
दाल भात खाता हूँ
ये देश किसका है
शायद किसी का नहीं
देश द्रोह की परिभाषाएँ बदल गई
बोलने की आज़ादी
मूलभूत अधिकार ही  रह गए याद
देश खो गया
सत्ता की कुर्सी रह गई आँखों के सामने
देश कहाँ  गया
भाई इन्हें सत्ता मे रहने दो
नही तो वो दिन दूर नहीं जब ये
सब कुछ भूल जाएंगे
वोटों के लिए ईमान ही नहीं बेचेंगे
माँ भी पड़ोसियों को दे आएंगे
उनकी कहकर
और सब मिलकर गाल बजाएँगे
सिर्फ गाल बजाएँगे

-कुशवंश

Monday

पुण्य की गंगा


मेरे गाव मे
कल ही
पहरेदार आए है
अपनी संस्कृति बचाने  को  दूर से
लंबरदार आए है
घने बागों मे,   दल बल सहित
डेरा जमाया है
अनन्य   भक्तों ने  बड़ा
आसन सजाया है
बेचेंगे टिकट ,
डाइरेक्ट,
एकदम स्वर्ग जाने का
ठेका लिया  है  आपके
कल को बनाने का
वर्जित है ,
यहाँ आश्रम मे
जूते और खाली दिमाग
जेहन मे  बस प्रज्वलित हो
धर्म की आग
चलेगी  नहीं कोई  वहाँ
तर्कों की कसौटी
सेंकी जाएगी यहाँ बस
धर्म की रोटी
कौन आयेगा यहाँ  सब  वी आई पी  की
लिस्ट है तैयार
शासन  प्रमुख   की प्रथम दिन  होगी  यहा दरकार
महिलाएं बस ... ,
गुरुजी के बहुत नजदीक जाएंगी
भक्ति रस मे सब   मगन होगी
मन लगाएँगी
आज से पंद्रह   दिनों  बस
अध्यात्म का मेला
भक्तों से प्रभू  का
सीधा   है संपर्क का रेला
सूखा पड़ा  , फसले हुयी   बर्बाद
कुछ भी न हुआ होता
कुछ महीने  पहले अगर
समागम हुआ होता
धूल मे अध्यात्म के कण  छोड़ जाएँगे
जाएँगे यहाँ से
पुण्य की गंगा बहाएँगे


- कुशवंश




 

Friday

ताड़ी बाबा





कल तक बंधू साथ बैठकर

पीते थे तुम ताड़ी

आज गले में माला डाली

बड़ी बढ़ा ली दाढी

इधर-उधर की बात बनाकर

सबका भविष्य बताते

किस राशी में कल क्या होगा

गूढ़ अर्थ समझाते

कैसे तुम विद्वान् बन गए

कुछ हमको बतलाओ

कैसे चमके अपनी किस्मत

हमको भी समझाओ

कैसे बदला रातोरात

चोला बाबा धारी

कैसे छूटी रात दिनों की

ताड़ी की बीमारी

सालों से था जिसका डेरा

वो चुंगी का ढाबा

रातो रात बन गया कैसे

चैनल ताड़ी बाबा

-कुशवंश

Saturday

आपके दोहे

















झाड़ू लेकर मैं चला , गंदा मिला न कोय
जो घर देखा आपना , मुझसा गंदा न होय

मीडिया  के साथी मेरे , अपना मीडिया होय 
स्ट्रिंग अपना कैसे हुआ , झाड़ू दिया भिगोय

गले मे मफ़लर, खो खो खांसी , बंगलुरू विश्राम 
कौन बना है बाप आपका ,छिड़ा हुआ संग्राम 

बिजली सस्ती, पानी मुफ्त , वाईफ़ाई पैसों से मुक्त 
दिल्ली मांगेगी हिसाब , अब कैसे दूँ मैं एक मुस्त


नई खरीदी झाड़ू अपनी , बिखरी जाती सींकें
अभी भी खांसी ठीक नही है , आने लगी हैं छींकें 

राजनीति मे आकार जाना , राजनीति का गंदा खेल 
दिल्ली की  कुर्सी से अच्छी अब तो लगती सेंट्रल जेल।


-कुशवंश



Monday

मफ़लर डाले आम आदमी



झाड़ू सर पे चढ़ गई
ऐसा घूमा चक्र
मोदी जी का,  सीधा खाका
हुआ दिल्ली मे वक्र
मफ़लर डाले आम आदमी
मंच से ऐसा खाँसा
मुफ्त-मुफ्त के राग  मे आकार
खा गए तगड़ा झांसा
बिजली  सस्ती ,
पानी मुफ्त
सरकार रहेगी एकदम चुस्त
विभागीय बोझ उठाएँ मंत्री
जल्दी निर्णय लेंगे
सीएम  बस पहरेदारी मे
यहाँ से वहाँ चलेंगे
जो भी मंत्री सुस्त चलेगा
होगा  डब्बा गोल
भ्रस्ताचारी अधिकारी की
खोलेंगे अब पोल
खुली अदालत , धरना  प्रदर्शन
अब है एकदम बंद
पाँच साल तक राज्य करेंगे
दिल्ली मे निर्द्वंद

-कुशवंश

Sunday

अच्छे दिन .......आ गए


चुनाव हुये पूरे
हम वही रह गए अधूरे
गरीबी कम होगी
वोट दिया था
क्या पता
आखिरी बार
उधार का घी पिया था
आलू
बाबा मोल
टमाटर
ताई मोल
और प्याज़ का पूंछों मत हाल
न जाने कहाँ हो गया
गोल
हमारी झोपड़ी के ऊपर से
कल रात गुजरी
बुलेट ट्रेन
रात मे ही गूंज उठी किलकारी
आम्मा बोली
ये और आई महगाई की मारी
सुबह हुयी
खुदने लगा
पटरी उस पार का इलाका
हमारी उम्मीद जगी
जब घर मे ही बनने लगा
सिंगापूर सा हाईटेक सिटी
हमने सोचा
अब तो दिन बहुर जाएँगे
हम भी बीस मंजिल तक
सब्जी बेंच आएंगे
उस दिन हमे शिक्षा का महत्व समझ आया
जब घसीटे ने बताया
सरकार ला रही है  ऐफ डी आई
हमारी झोपड़ियों पर भी
ऐफ डी आई का
चल रहा है विचार
अगले वर्ष तक विदेशी निवेश होगा
झोपड़ियों मे भी
मल्टीस्टोरी का प्रवेश होगा.
हरिया .....आज भंग लाओ
और निकालो कपड़े नये
क्योंकी
अच्छी दिन ..........
अच्छे दिन .......आ गए .




Wednesday

मैं ही जीतूँगा



नेताजी के वोट मांगने पर
वोटर चिल्लाया
शहर कूडे से बजबजा रहा है
बीमारी से अस्पताल
पूंछते हो कैसा है हाल
नेताजी बोले मेयर किसका है
उससे क्यो नहीं पूछते
वोटर बोला
अच्छा बिजली ही बताइये
कहाँ चली जाती है
सड़क क्यों
गिट्टियों से गुलछर्रे उड़ाती है
खुदे चौराहों पर
तुम्हें लाज नहीं आती है
नेताजी
प्रदेश मे किसका है राज्य
किस पार्टी का राजा
क्यो नही बजाते उसका बाजा
वोटर कपड़े फाड़ने पर उतारू था
अच्छा मिले क्यों बंद हुयी
आपके 15 सालों के सेवा काल मे
रात मे आधी आबादी
सड़क पर क्यों सोती है
जो घर मे सोती है उसे
चोर डकैतों का डर क्यों है
क्यों इतने सपने दिखाते हो
और वोट ले के भाग जाते हो
कभी कभी
होते हो
गली कूँचे मे
मोहल्ले मे
जन्म दिन और तेरही मे
शहर बदल के दिखाना
तब ही वोट मांगने आना
नेताजी मुस्कुराए
अरे भाई
ओवर ब्रिज , नई गाडियाँ
हवाई अड्डे पर कभी तो उतरता है प्लेन
ये तो हमारी है देन
अबकी बार जिताओ
काया कल्प कर देंगे
वोटर बोला
अबकी सबसे पहले तौलेंगे
और किसी
साफ सुथरे को चुनेंगे
नेताजी मुस्कुराए
और अपना सफ़फाक कुर्ता देखकर
फूले नही समाये.......

—कुशवंश